तेरा मरना इश्क़ का आग़ाज़ था
मौत पर होगा मिरे अंजाम-ए-इश्क़
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ज़मीं रोई हमारे हाल पर और आसमाँ रोया
निशान-ए-मंज़िल-ए-जानाँ मिले मिले न मिले
किस तरह हुस्न-ए-ज़बाँ की हो तरक़्क़ी 'वहशत'
बेजा है तिरी जफ़ा का शिकवा
मैं ने माना काम है नाला दिल-ए-नाशाद का
इस ज़माने में ख़मोशी से निकलता नहीं काम
मेरा मक़्सद कि वो ख़ुश हों मिरी ख़ामोशी से
'वहशत' उस बुत ने तग़ाफ़ुल जब किया अपना शिआर
जो तुझ से शोर-ए-तबस्सुम ज़रा कमी होगी
अभी होते अगर दुनिया में 'दाग़'-ए-देहलवी ज़िंदा
हम ने आलम से बेवफ़ाई की