सच कहा है कि ब-उम्मीद है दुनिया क़ाइम
दिल-ए-हसरत-ज़दा भी तेरा तमन्नाई है
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अज़ीज़ अगर नहीं रखता न रख ज़लील ही रख
आग़ाज़ से ज़ाहिर होता है अंजाम जो होने वाला है
तू हम से है बद-गुमाँ सद अफ़्सोस
हर चंद 'वहशत' अपनी ग़ज़ल थी गिरी हुई
दिल को हम कब तक बचाए रखते हर आसेब से
देखना वो गिर्या-ए-हसरत-मआल आ ही गया
जान उस की अदाओं पर निकलती ही रहेगी
किसी तरह दिन तो कट रहे हैं फ़रेब-ए-उम्मीद खा रहा हूँ
बज़्म में उस बे-मुरव्वत की मुझे
हम ने आलम से बेवफ़ाई की
तीर-ए-नज़र ने ज़ुल्म को एहसाँ बना दिया
न वो पूछते हैं न कहता हूँ मैं