क़द्रदानी की कैफ़ियत मालूम
ऐब क्या है अगर हुनर न हुआ
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उस दिल-नशीं अदा का मतलब कभी न समझे
मज़ा आता अगर गुज़री हुई बातों का अफ़्साना
दिल तोड़ दिया तुम ने मेरा अब जोड़ चुके तुम टूटे को
ज़िंदगी अपनी किसी तरह बसर करनी है
नालों से अगर मैं ने कभी काम लिया है
किस नाम-ए-मुबारक ने मज़ा मुँह को दिया है
जान उस की अदाओं पर निकलती ही रहेगी
तिरे आशुफ़्ता से क्या हाल-ए-बेताबी बयाँ होगा
शौक़ फिर कूचा-ए-जानाँ का सताता है मुझे
शौक़ ने इशरत का सामाँ कर दिया
लुत्फ़-ए-निहाँ से जब जब वो मुस्कुरा दिए हैं
इस ज़माने में ख़मोशी से निकलता नहीं काम