न वो पूछते हैं न कहता हूँ मैं
रही जाती है दिल की दिल में हवस
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किसी सूरत से उस महफ़िल में जा कर
क्यूँ ग़म्ज़ा-ए-जाँ-सिताँ को ख़ंजर न कहें
तू है और ऐश है और अंजुमन-आराई है
दोनों ने बढ़ाई रौनक़-ए-हुस्न
ज़बरदस्ती ग़ज़ल कहने पे तुम आमादा हो 'वहशत'
उस दिल-नशीं अदा का मतलब कभी न समझे
ज़माना भी मुझ से ना-मुवाफ़िक़ मैं आप भी दुश्मन-ए-सलामत
नहीं कि इश्क़ नहीं है गुल ओ समन से मुझे
हुए हैं गुम जिस की जुस्तुजू में उसी की हम जुस्तुजू करेंगे
मुरव्वत का पास और वफ़ा का लिहाज़
आज़ाद उस से हैं कि बयाबाँ ही क्यूँ न हो