मेहनत हो मुसीबत हो सितम हो तो मज़ा है
मिलना तिरा आसाँ है तलबगार बहुत हैं
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क्यूँ ग़म्ज़ा-ए-जाँ-सिताँ को ख़ंजर न कहें
ज़िंदगी अपनी किसी तरह बसर करनी है
यही है इश्क़ की मुश्किल तो मुश्किल आसाँ है
आह-ए-शब नाला-ए-सहर ले कर
किस नाम-ए-मुबारक ने मज़ा मुँह को दिया है
ऐ अहल-ए-वफ़ा ख़ाक बने काम तुम्हारा
तू है और ऐश है और अंजुमन-आराई है
आग़ाज़ से ज़ाहिर होता है अंजाम जो होने वाला है
तू हम से है बद-गुमाँ सद अफ़्सोस
लूटा है मुझे उस की हर अदा ने
अज़ीज़ अगर नहीं रखता न रख ज़लील ही रख
आप अपना रू-ए-ज़ेबा देखिए