ख़याल तक न किया अहल-ए-अंजुमन ने ज़रा
तमाम रात जली शम्अ अंजुमन के लिए
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आज़ाद उस से हैं कि बयाबाँ ही क्यूँ न हो
नालों से अगर मैं ने कभी काम लिया है
वफ़ा-ए-दोस्ताँ कैसी जफ़ा-ए-दुश्मनाँ कैसी
बढ़ चली है बहुत हया तेरी
ज़ालिम की तो आदत है सताता ही रहेगा
पोशीदा देखती है किसी की नज़र मुझे
ज़बरदस्ती ग़ज़ल कहने पे तुम आमादा हो 'वहशत'
सच कहा है कि ब-उम्मीद है दुनिया क़ाइम
हम ने आलम से बेवफ़ाई की
क्या है कि आज चलते हो कतरा के राह से
क़द्रदानी की कैफ़ियत मालूम