ख़ाक में किस दिन मिलाती है मुझे
उस से मिलने की तमन्ना देखिए
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बेजा है तिरी जफ़ा का शिकवा
तीर-ए-नज़र ने ज़ुल्म को एहसाँ बना दिया
नालों से अगर मैं ने कभी काम लिया है
संग-ए-तिफ़्लाँ फ़िदा-ए-सर न हुआ
रुख़-ए-रौशन से यूँ उट्ठी नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
मुरव्वत का पास और वफ़ा का लिहाज़
आँख में जल्वा तिरा दिल में तिरी याद रहे
ज़बरदस्ती ग़ज़ल कहने पे तुम आमादा हो 'वहशत'
उस दिल-नशीं अदा का मतलब कभी न समझे
कहते हो अब मिरे मज़लूम पे बेदाद न हो
नहीं मुमकिन लब-ए-आशिक़ से हर्फ़-ए-मुद्दआ निकले
शौक़ फिर कूचा-ए-जानाँ का सताता है मुझे