जो गिरफ़्तार तुम्हारा है वही है आज़ाद
जिस को आज़ाद करो तुम कभी आज़ाद न हो
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न वो पूछते हैं न कहता हूँ मैं
देखना वो गिर्या-ए-हसरत-मआल आ ही गया
छुपा न गोशा-नशीनी से राज़-ए-दिल 'वहशत'
बेजा है तिरी जफ़ा का शिकवा
ख़ाक में किस दिन मिलाती है मुझे
अज़ीज़ अगर नहीं रखता न रख ज़लील ही रख
कुछ समझ कर ही हुआ हूँ मौज-ए-दरिया का हरीफ़
मुरव्वत का पास और वफ़ा का लिहाज़
दोनों ने किया है मुझ को रुस्वा
सुरूर-अफ़्ज़ा हुई आख़िर शराब आहिस्ता आहिस्ता
गर्दन झुकी हुई है उठाते नहीं हैं सर