इस ज़माने में ख़मोशी से निकलता नहीं काम
नाला पुर-शोर हो और ज़ोरों पे फ़रियाद रहे
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शौक़ ने इशरत का सामाँ कर दिया
उस दिल-नशीं अदा का मतलब कभी न समझे
तू है और ऐश है और अंजुमन-आराई है
आँख में जल्वा तिरा दिल में तिरी याद रहे
दोनों ने किया है मुझ को रुस्वा
न वो पूछते हैं न कहता हूँ मैं
ज़ालिम की तो आदत है सताता ही रहेगा
किस नाम-ए-मुबारक ने मज़ा मुँह को दिया है
लूटा है मुझे उस की हर अदा ने
मेहनत हो मुसीबत हो सितम हो तो मज़ा है
क्यूँ ग़म्ज़ा-ए-जाँ-सिताँ को ख़ंजर न कहें
दर्द आ के बढ़ा दो दिल का तुम ये काम तुम्हें क्या मुश्किल है