हर चंद 'वहशत' अपनी ग़ज़ल थी गिरी हुई
महफ़िल सुख़न की गूँज उठी वाह वाह से
Habib Jalib
Anwar Masood
Rahat Indori
Gulzar
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(483) Peoples Rate This
हम ने आलम से बेवफ़ाई की
बज़्म में उस बे-मुरव्वत की मुझे
'वहशत' उस बुत ने तग़ाफ़ुल जब किया अपना शिआर
ख़ाक में किस दिन मिलाती है मुझे
लूटा है मुझे उस की हर अदा ने
उठा लेने से तो दिल के रहा मैं
आज़ाद उस से हैं कि बयाबाँ ही क्यूँ न हो
ज़मीं रोई हमारे हाल पर और आसमाँ रोया
सच कहा है कि ब-उम्मीद है दुनिया क़ाइम
किसी तरह दिन तो कट रहे हैं फ़रेब-ए-उम्मीद खा रहा हूँ
शौक़ ने इशरत का सामाँ कर दिया
शर्मिंदा किया जौहर-ए-बालिग़-नज़री ने