गर्दन झुकी हुई है उठाते नहीं हैं सर
डर है उन्हें निगाह लड़ेगी निगाह से
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दर्द का मेरे यक़ीं आप करें या न करें
आँख में जल्वा तिरा दिल में तिरी याद रहे
शौक़ ने इशरत का सामाँ कर दिया
छुपा न गोशा-नशीनी से राज़-ए-दिल 'वहशत'
हुए हैं गुम जिस की जुस्तुजू में उसी की हम जुस्तुजू करेंगे
जुदा करेंगे न हम दिल से हसरत-ए-दिल को
दिल को हम कब तक बचाए रखते हर आसेब से
'वहशत' उस बुत ने तग़ाफ़ुल जब किया अपना शिआर
चला जाता है कारवान-ए-नफ़स
तिरे आशुफ़्ता से क्या हाल-ए-बेताबी बयाँ होगा
उठा लेने से तो दिल के रहा मैं
मजाल-ए-तर्क-ए-मोहब्बत न एक बार हुई