दिल तोड़ दिया तुम ने मेरा अब जोड़ चुके तुम टूटे को
वो काम निहायत आसाँ था ये काम बला का मुश्किल है
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हम ने आलम से बेवफ़ाई की
छुपा न गोशा-नशीनी से राज़-ए-दिल 'वहशत'
ज़िंदगी अपनी किसी तरह बसर करनी है
और इशरत की तमन्ना क्या करें
था क़फ़स का ख़याल दामन-गीर
लगाओ न जब दिल तो फिर क्यूँ लगावट
ख़याल तक न किया अहल-ए-अंजुमन ने ज़रा
ज़बरदस्ती ग़ज़ल कहने पे तुम आमादा हो 'वहशत'
जुदा करेंगे न हम दिल से हसरत-ए-दिल को
शौक़ ने इशरत का सामाँ कर दिया
लुत्फ़-ए-निहाँ से जब जब वो मुस्कुरा दिए हैं
तू हम से है बद-गुमाँ सद अफ़्सोस