दिल को हम कब तक बचाए रखते हर आसेब से
ठेस आख़िर लग गई शीशे में बाल आ ही गया
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मैं ने माना काम है नाला दिल-ए-नाशाद का
सीने में मिरे दाग़-ए-ग़म-ए-इश्क़-ए-नबी है
दर्द का मेरे यक़ीं आप करें या न करें
जान उस की अदाओं पर निकलती ही रहेगी
बे-समझे न जाम-ए-ग़म पिया था मैं ने
आप अपना रू-ए-ज़ेबा देखिए
इस ज़माने में ख़मोशी से निकलता नहीं काम
किसी सूरत से उस महफ़िल में जा कर
ज़मीं रोई हमारे हाल पर और आसमाँ रोया
आज़ाद उस से हैं कि बयाबाँ ही क्यूँ न हो
मजाल-ए-तर्क-ए-मोहब्बत न एक बार हुई
पोशीदा देखती है किसी की नज़र मुझे