छुपा न गोशा-नशीनी से राज़-ए-दिल 'वहशत'
कि जानता है ज़माना मिरे सुख़न से मुझे
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देखना वो गिर्या-ए-हसरत-मआल आ ही गया
हम ने आलम से बेवफ़ाई की
चला जाता है कारवान-ए-नफ़स
बहार आई है आराइश-ए-चमन के लिए
बे-समझे न जाम-ए-ग़म पिया था मैं ने
तुम्हारा मुद्दआ ही जब समझ में कुछ नहीं आया
कहते हो अब मिरे मज़लूम पे बेदाद न हो
नहीं मुमकिन लब-ए-आशिक़ से हर्फ़-ए-मुद्दआ निकले
पैमान-ए-वफ़ा-ए-यार हैं हम
तू हम से है बद-गुमाँ सद अफ़्सोस
आप अपना रू-ए-ज़ेबा देखिए
संग-ए-तिफ़्लाँ फ़िदा-ए-सर न हुआ