बेजा है तिरी जफ़ा का शिकवा
मारा मुझ को मिरी वफ़ा ने
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Wasi Shah
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(579) Peoples Rate This
लुत्फ़-ए-निहाँ से जब जब वो मुस्कुरा दिए हैं
तू है और ऐश है और अंजुमन-आराई है
किस नाम-ए-मुबारक ने मज़ा मुँह को दिया है
संग-ए-तिफ़्लाँ फ़िदा-ए-सर न हुआ
आँख में जल्वा तिरा दिल में तिरी याद रहे
ख़याल तक न किया अहल-ए-अंजुमन ने ज़रा
सच कहा है कि ब-उम्मीद है दुनिया क़ाइम
ज़ब्त की कोशिश है जान-ए-ना-तवाँ मुश्किल में है
बे-समझे न जाम-ए-ग़म पिया था मैं ने
बहार आई है आराइश-ए-चमन के लिए
और इशरत की तमन्ना क्या करें
कहते हो अब मिरे मज़लूम पे बेदाद न हो