बज़्म में उस बे-मुरव्वत की मुझे
देखना पड़ता है क्या क्या देखिए
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शर्मिंदा किया जौहर-ए-बालिग़-नज़री ने
ज़माना भी मुझ से ना-मुवाफ़िक़ मैं आप भी दुश्मन-ए-सलामत
दिल के कहने पे चलूँ अक़्ल का कहना न करूँ
जो तुझ से शोर-ए-तबस्सुम ज़रा कमी होगी
दर्द आ के बढ़ा दो दिल का तुम ये काम तुम्हें क्या मुश्किल है
मुझ से जो न मिलते वो कोई रात न थी
लूटा है मुझे उस की हर अदा ने
तू हम से है बद-गुमाँ सद अफ़्सोस
ज़मीं रोई हमारे हाल पर और आसमाँ रोया
ख़याल तक न किया अहल-ए-अंजुमन ने ज़रा
मजाल-ए-तर्क-ए-मोहब्बत न एक बार हुई
मुरव्वत का पास और वफ़ा का लिहाज़