और इशरत की तमन्ना क्या करें
सामने तू हो तुझे देखा करें
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किस तरह हुस्न-ए-ज़बाँ की हो तरक़्क़ी 'वहशत'
किसी तरह दिन तो कट रहे हैं फ़रेब-ए-उम्मीद खा रहा हूँ
मैं ने माना काम है नाला दिल-ए-नाशाद का
पैमान-ए-वफ़ा-ए-यार हैं हम
तेरा मरना इश्क़ का आग़ाज़ था
'वहशत'-ए-मुब्तला ख़ुदा के लिए
उस दिल-नशीं अदा का मतलब कभी न समझे
अभी होते अगर दुनिया में 'दाग़'-ए-देहलवी ज़िंदा
सुरूर-अफ़्ज़ा हुई आख़िर शराब आहिस्ता आहिस्ता
ज़ब्त की कोशिश है जान-ए-ना-तवाँ मुश्किल में है
ऐ अहल-ए-वफ़ा ख़ाक बने काम तुम्हारा