आँख में जल्वा तिरा दिल में तिरी याद रहे
ये मयस्सर हो तो फिर क्यूँ कोई नाशाद रहे
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नहीं कि इश्क़ नहीं है गुल ओ समन से मुझे
हम ने आलम से बेवफ़ाई की
क़द्रदानी की कैफ़ियत मालूम
मजाल-ए-तर्क-ए-मोहब्बत न एक बार हुई
पैमान-ए-वफ़ा-ए-यार हैं हम
बे-समझे न जाम-ए-ग़म पिया था मैं ने
जान उस की अदाओं पर निकलती ही रहेगी
ऐ अहल-ए-वफ़ा ख़ाक बने काम तुम्हारा
तू हम से है बद-गुमाँ सद अफ़्सोस
जो गिरफ़्तार तुम्हारा है वही है आज़ाद
मेहनत हो मुसीबत हो सितम हो तो मज़ा है
ज़बरदस्ती ग़ज़ल कहने पे तुम आमादा हो 'वहशत'