आग़ाज़ से ज़ाहिर होता है अंजाम जो होने वाला है
अंदाज़-ए-ज़माना कहता है पूरी हो तमन्ना मुश्किल है
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न वो पूछते हैं न कहता हूँ मैं
ज़मीं रोई हमारे हाल पर और आसमाँ रोया
शौक़ फिर कूचा-ए-जानाँ का सताता है मुझे
यही है इश्क़ की मुश्किल तो मुश्किल आसाँ है
दिल को हम कब तक बचाए रखते हर आसेब से
बढ़ा हंगामा-ए-शौक़ इस क़दर बज़्म-ए-हरीफ़ाँ में
दिल के कहने पे चलूँ अक़्ल का कहना न करूँ
नहीं मुमकिन लब-ए-आशिक़ से हर्फ़-ए-मुद्दआ निकले
'वहशत'-ए-मुब्तला ख़ुदा के लिए
किसी सूरत से उस महफ़िल में जा कर
तीर-ए-नज़र ने ज़ुल्म को एहसाँ बना दिया
छुपा न गोशा-नशीनी से राज़-ए-दिल 'वहशत'