Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_40a01bbe65495304d88c3034125c2bbd, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
शौक़ ने इशरत का सामाँ कर दिया - वहशत रज़ा अली कलकत्वी कविता - Darsaal

शौक़ ने इशरत का सामाँ कर दिया

शौक़ ने इशरत का सामाँ कर दिया

दिल को महव-ए-रू-ए-जानाँ कर दिया

तू ने ऐ जमइयत-ए-दिल की हवस

और भी मुझ को परेशाँ कर दिया

वाह रे ज़ख़्म-ए-मोहब्बत की ख़लिश

जिस को दिल ने राहत-ए-जाँ कर दिया

ख़ुद-नुमाई ख़ुद-फ़रोशी हो गई

आप ने अपने को अर्ज़ां कर दिया

उन के दामन तक न पहुँचा दस्त-ए-शौक़

उस को मसरूफ़-ए-गरेबाँ कर दिया

बज़्म में जब ग़ैर पर डाली नज़र

आप ने मुझ पर भी एहसाँ कर दिया

कुछ बढ़ा कर मैं ने बहर-ए-शरह-ए-ग़म

चाक को उनवान-ए-दामाँ कर दिया

झुक गई आख़िर हया से उन की आँख

शौक़ ने मुझ को पशीमाँ कर दिया

पा-ए-बुत पर मैं ने दो सज्दे किए

कुफ़्र को भी जुज़्व-ए-ईमाँ कर दिया

उसे ख़याल-ए-लैला-ए-मजनूँ-नवाज़

तू ने सहरा को गुलिस्ताँ कर दिया

हो के ज़ाइल क़ुव्वत-ए-एहसास ने

मुश्किलों को मेरी आसाँ कर दिया

दिल नहीं जाता था सू-ए-राह-ए-दैर

कैसे काफ़िर को मुसलमाँ कर दिया

तू ने 'वहशत' क्यूँ ख़िलाफ़-ए-रस्म-ए-इश्क़

दर्द को रुस्वा-ए-दरमाँ कर दिया

(587) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Wahshat Raza Ali Kalkatvi. is written by Wahshat Raza Ali Kalkatvi. Complete Poem in Hindi by Wahshat Raza Ali Kalkatvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.