लुत्फ़-ए-निहाँ से जब जब वो मुस्कुरा दिए हैं
लुत्फ़-ए-निहाँ से जब जब वो मुस्कुरा दिए हैं
मैं ने भी ज़ख़्म दिल के उन को दिखा दिए हैं
कुछ हर्फ़-ए-आरज़ू था कुछ याद-ए-ऐश-ए-रफ़्ता
जितने थे नक़्श दिल में हम ने मिटा दिए हैं
फ़र्त-ए-ग़म-ओ-अलम से जब दिल हुआ है गिर्यां
उस ने इनायतों के दरिया बहा दिए हैं
देखे हैं तेरे तेवर धोका न खाएँगे अब
उठते थे वलवले कुछ हम ने दबा दिए हैं
उस दिल-नशीं अदा का मतलब कभी न समझे
जब हम ने कुछ कहा है वो मुस्कुरा दिए हैं
शोख़ कर दिया है छेड़ों से हम ने तुम को
कुछ हौसले हमारे तुम ने बढ़ा दिए हैं
कोई तुझ को देखे पर्दा उठाने वाले
तू ने तजल्लियों के पर्दे गिरा दिए हैं
करता हूँ 'वहशत' उन से अर्ज़-ए-नियाज़-ए-पिंहाँ
इस काम के तरीक़े दिल ने बता दिए हैं
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