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दिल के कहने पे चलूँ अक़्ल का कहना न करूँ - वहशत रज़ा अली कलकत्वी कविता - Darsaal

दिल के कहने पे चलूँ अक़्ल का कहना न करूँ

दिल के कहने पे चलूँ अक़्ल का कहना न करूँ

मैं इसी सोच में हूँ क्या करूँ और क्या न करूँ

ज़िंदगी अपनी किसी तरह बसर करना है

क्या करूँ आह अगर तेरी तमन्ना न करूँ

मजलिस-ए-वाज़ में क्या मेरी ज़रूरत नासेह

घर में बैठा हुआ शुग़ल-ए-मय-ओ-मीना न करूँ

मस्त है हाल में दिल बे-ख़बर-ए-मुस्तक़बिल

सोचता हूँ उसे हुश्यार करूँ या न करूँ

किस तरह हुस्न-ए-ज़बाँ की हो तरक़्क़ी 'वहशत'

मैं अगर ख़िदमत-ए-उर्दू-ए-मुअ'ल्ला न करूँ

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In Hindi By Famous Poet Wahshat Raza Ali Kalkatvi. is written by Wahshat Raza Ali Kalkatvi. Complete Poem in Hindi by Wahshat Raza Ali Kalkatvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.