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दर्द का मेरे यक़ीं आप करें या न करें - वहशत रज़ा अली कलकत्वी कविता - Darsaal

दर्द का मेरे यक़ीं आप करें या न करें

दर्द का मेरे यक़ीं आप करें या न करें

अर्ज़ इतनी है कि इस राज़ का चर्चा न करें

लाख ग़ाफ़िल सही पर ऐसे भी हम कोर नहीं

कि चमन देख के ज़िक्र-ए-चमन-आरा न करें

अक़्ल-ओ-दानिश से तो कुछ काम न निकला अपना

कब तक आख़िर दिल-ए-दीवाना का कहना न करें

वो निगाहें अजब अंदाज़ से हैं इश्वा-फ़रोश

ग़म-ए-पिन्हाँ को हमारे कहीं रुस्वा न करें

तेरे आशुफ़्ता-सर ऐसे भी नहीं सौदाई

कि दिल-ओ-दीं के लिए ज़ुल्फ़ का सौदा न करें

मैं ने बेहूदा तवक़्क़ो' की सज़ा पाई है

कुछ ख़याल आप मिरी हसरत-ए-दिल का न करें

मेरे अरमानों को काश इतनी समझ हो 'वहशत'

कि उन आँखों से मुरव्वत का तक़ाज़ा न करें

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In Hindi By Famous Poet Wahshat Raza Ali Kalkatvi. is written by Wahshat Raza Ali Kalkatvi. Complete Poem in Hindi by Wahshat Raza Ali Kalkatvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.