वहशत रज़ा अली कलकत्वी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का वहशत रज़ा अली कलकत्वी (page 3)
नाम | वहशत रज़ा अली कलकत्वी |
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अंग्रेज़ी नाम | Wahshat Raza Ali Kalkatvi |
जन्म की तारीख | 1881 |
मौत की तिथि | 1956 |
जन्म स्थान | Kolkata |
यहाँ हर आने वाला बन के इबरत का निशाँ आया
'वहशत'-ए-मुब्तला ख़ुदा के लिए
वफ़ा-ए-दोस्ताँ कैसी जफ़ा-ए-दुश्मनाँ कैसी
तू है और ऐश है और अंजुमन-आराई है
तीर-ए-नज़र ने ज़ुल्म को एहसाँ बना दिया
तिरे आशुफ़्ता से क्या हाल-ए-बेताबी बयाँ होगा
तल्ख़ी-कश-ए-नौमीदी-ए-दीदार बहुत हैं
सुरूर-अफ़्ज़ा हुई आख़िर शराब आहिस्ता आहिस्ता
शौक़ फिर कूचा-ए-जानाँ का सताता है मुझे
शौक़ ने इशरत का सामाँ कर दिया
शौक़ देता है मुझे पैग़ाम-ए-इश्क़
शर्मिंदा किया जौहर-ए-बालिग़-नज़री ने
संग-ए-तिफ़्लाँ फ़िदा-ए-सर न हुआ
पोशीदा देखती है किसी की नज़र मुझे
पैमान-ए-वफ़ा-ए-यार हैं हम
नालों से अगर मैं ने कभी काम लिया है
नहीं मुमकिन लब-ए-आशिक़ से हर्फ़-ए-मुद्दआ निकले
नहीं कि इश्क़ नहीं है गुल ओ समन से मुझे
मुरव्वत का पास और वफ़ा का लिहाज़
मैं ने माना काम है नाला दिल-ए-नाशाद का
लुत्फ़-ए-निहाँ से जब जब वो मुस्कुरा दिए हैं
लूटा है मुझे उस की हर अदा ने
लगाओ न जब दिल तो फिर क्यूँ लगावट
लबरेज़-ए-हक़ीक़त गो अफ़साना-ए-मूसा है
क्या है कि आज चलते हो कतरा के राह से
किसी तरह दिन तो कट रहे हैं फ़रेब-ए-उम्मीद खा रहा हूँ
किसी सूरत से उस महफ़िल में जा कर
किस नाम-ए-मुबारक ने मज़ा मुँह को दिया है
कहते हो अब मिरे मज़लूम पे बेदाद न हो
जुदा करेंगे न हम दिल से हसरत-ए-दिल को