उलझी थी जिन में एक ज़माने से ज़िंदगी
क्यूँ ऐ ग़म-ए-हयात वो गेसू सँवर गए
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हर एक गाम पे सज्दा यहाँ रवा होगा
रौशन हों दिल के दाग़ तो लब पर फ़ुग़ाँ कहाँ
हम अजनबी हैं आज भी अपने दयार में
मिज़्गाँ पे आज यास के मोती बिखर गए
सितम है दिल के धड़कने को भी क़रार कहें