पहुँच गए हैं हम ऐसे दयार में कि 'वहीद'
जहाँ गुनाह तो लाज़िम है नेकियाँ बर्बाद
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कोई न चाहने वाला था हुस्न-ए-रुस्वा का
हम आज राह-ए-तमन्ना में जी को हार आए
ग़म के हाथों शुक्र-ए-ख़ुदा है इश्क़ का चर्चा आम नहीं
जिधर निगाह उठी खिंच गई नई दीवार
ज़माने फिर नए साँचे में ढलने वाला है
हमेशा ख़ून-ए-शहीदाँ के रंग से आबाद
पस-ए-दीवार-ए-ज़िंदाँ
'वहीद' कार-ए-सियासत है कार-ए-बे-काराँ
सफ़ा मर्वा