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ज़माने फिर नए साँचे में ढलने वाला है - वहीद क़ुरैशी कविता - Darsaal

ज़माने फिर नए साँचे में ढलने वाला है

ज़माने फिर नए साँचे में ढलने वाला है

ज़रा ठहर कि नतीजा निकलने वाला है

अभी हुजूम-ए-अज़ीज़ाँ है ज़ेर-ए-तख़्त-ए-मुराद

मगर ज़माना चलन तो बदलने वाला है

हुई है नाक़ा-ए-लैला को सारबाँ की तलाश

जुलूस शहर की गलियों में चलने वाला है

ज़मीर अपनी तमन्ना को फिर उगल देगा

समुंदरों से ये सोना उछलने वाला है

नया अज़ाब नई सुब्हों की तलाश में है

ये मुल्क फिर नया क़ातिल बदलने वाला है

सदा-ए-सुब्ह-ए-बशारत ख़बर सुनाएगी

सुलग रहा है जो सीना वो जलने वाला है

नए अज़ाब की आमद है और हम हैं 'वहीद'

अज़ाब-ए-दौरा-ए-हाज़िर तो टलने वाला है

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In Hindi By Famous Poet Waheed Quraishi. is written by Waheed Quraishi. Complete Poem in Hindi by Waheed Quraishi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.