क्यूँ तिरी क़ंद-लबी ख़ुश-सुख़नी याद आई
क्यूँ तिरी क़ंद-लबी ख़ुश-सुख़नी याद आई
ज़हर-अफ़्शानी-ए-दुन्या-ए-दनी याद आई
पए-गुल-गश्त-ए-चमन फिर दिल-ए-दीवाना चला
फिर तिरी सर्व-क़दी गुल-बदनी याद आई
जब किसी जिस्म पे सजते हुए देखा है लिबास
तेरी ख़ुश-क़ामती ख़ुश-पैरहनी याद आई
यूँ निबाहा तिरा वादा तिरे ग़म ने बरसों
ग़म-ए-अय्याम की पैमाँ-शिकनी याद आई
जाम उठाते ही दिल उमडा तो भर आईं आँखें
चश्म-ए-साक़ी तिरी साग़र-शिकनी याद आई
याद आई न कभी बे-सर-ओ-सामानी में
देख कर घर को ग़रीब-उल-वतनी याद आई
आज दिखलाते गुल-अफ़्शानी-ए-गुफ़्तार 'वहीद'
लग गई चुप जो वो ग़ुंचा-दहनी याद आई
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