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हम जो टूटे तो ग़म-ए-दहर का पैमाना बने - वहीद अख़्तर कविता - Darsaal

हम जो टूटे तो ग़म-ए-दहर का पैमाना बने

हम जो टूटे तो ग़म-ए-दहर का पैमाना बने

ख़ाक में मिल के भी ख़ाक-ए-रह-ए-मय-खाना बने

कौन इस बज़्म में समझेगा ग़म-ए-दिल की ज़बाँ

बात छोटी सी जब अफ़्साना-दर-अफ़्साना बने

संग-अंदाज़ों से ऊँचा है बहुत अपना मक़ाम

वर्ना मुमकिन था निशाना सर-ए-दीवाना बने

शहर-ए-जानाँ से भी हम लाए मोहब्बत का ख़िराज

क्या ज़रूरी है कि याँ वज़-ए-गदायाना बने

वहशत आमादा-ए-रुसवाई है बे-ख़ौफ़ जहाँ

ज़ब्त का है ये तक़ाज़ा कि तमाशा न बने

ज़िंदगी हम तिरे इतने तो ख़ता-वार न थे

कि जिसे अपना बनाएँ वही बेगाना बने

इक तमन्ना कोई ऐसा तो बड़ा जुर्म न थी

आँख ता-मर्ग छलकता हुआ पैमाना बने

क्या रिफ़ाक़त है यही ऐ दिल-ए-आशुफ़्ता-मिज़ाज

देख हम एक तिरे वास्ते क्या क्या न बने

अजनबी लगते हैं हम अपनी नज़र को ख़ुद ही

आप अपने से न इतना कोई बेगाना बने

हम पे इक उम्र से तारी है ख़मोशी ऐसी

एक नक़्शे पे सिमट जाए तो अफ़्साना बने

ऐ मिरे हौसला-ए-ग़म है यही वक़्त-ए-वफ़ा

ज़हर ही हासिल-ए-सद-उम्र-ए-तमन्ना न बने

ज़िंदगी करने के अंदाज़ तो भूलो न 'वहीद'

तुम ने क्या सीखा अगर इश्क़ सलीक़ा न बने

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In Hindi By Famous Poet Waheed Akhtar. is written by Waheed Akhtar. Complete Poem in Hindi by Waheed Akhtar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.