कोई बस्ती कि मुझ में बस्ती है

मैं आख़िर किस की जागत जागता हूँ

पपोटों में ये किस पानी का नमकीं ज़ाइक़ा है

मिरी पुतली में किस की रात है

और कार्निया में कौन से युग का सवेरा है

ये दिन भर कौन

मिज़्गानी किवाड़ों को मुसलसल खोलता और बंद करता है

मिरी तार-ए-नज़र पर बैठ कर

आख़िर ज़माने में नज़र किस की उतरती है

मैं आँखों से ये किस मंज़र के अंदर भागता हूँ

मैं आख़िर किस की जागत जागता हूँ?

भला मैं किस का सोना सो रहा हूँ

ये रेग-ख़्वाब पर बनते बिगड़ते क्या निशाँ हैं

मिरे अंदर तो जितने क़ाफ़िले चलते हैं

सारे अजनबी हैं

मैं हर इक ख़्वाब में कोई शनासा ढूँडता हूँ

ये कैसी औरतें हैं

जो सर में रेत का अफ़्शाँ भरे

मुझ को जकड़ती हैं

जो बाद-अज़-इख़्तिलात आहों से चीख़ों से पिघल कर

रेत हो जाती हैं गीली रेत में!!

ये बच्चे किस सदी के हैं

जो अपने क़हक़हा-आवर खिलौने मेरे हाथों में

थमा कर भाग जाते हैं

ये किस माबद के जोगी हैं

सहीफ़ों की ज़बाँ में बोलते हैं

इन के फ़र्ग़ुल फड़फड़ाते हैं

हवा में रीश उड़ती है

ये मैं किस की ख़ुशी को हँस रहा हूँ

किस का रोना रो रहा हूँ

भला मैं किस का सोना सो रहा हूँ?

मैं आख़िर किस का जीना जी रहा हूँ

मैं सहरा का शजर हूँ

जिस की शाख़ें घोंसलों से झुक गई हैं

किराए का मकाँ हूँ

जिस के कमरों में पराए लोग रहते हैं

फ़राज़-ए-कोह पर कोई पुराना ग़ार हूँ मैं

हवा से गूँजता साया-ज़दा वीराँ खंडर हूँ

कभी हूँ ईस्तादा और कभी मिस्मार हूँ मैं

फ़सील-ए-शहर हों या साया-ए-दीवार हूँ मैं

मिरे अंदर से ही कोई मुझे बतलाए

मैं क्या हूँ?

मिरे ख़लियों के गीले मरकज़ों में बंद

डी-एन-ए मिरे माँ बाप का है

जो इस के गिर्द पानी है

वो किस बेचैन सय्यारे के सागर से उठा है

मैं किस को भोगता हूँ

ये आख़िर कौन मुझ में गूँजता है

सनसनाता है

मैं आख़िर किस का होना हो रहा हूँ

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In Hindi By Famous Poet Waheed Ahmad. is written by Waheed Ahmad. Complete Poem in Hindi by Waheed Ahmad. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.