पाँच दस का
छोटा कमरा
दो
दरवाज़े
एक में गंदा पर्दा
दूजे में वो भी नहीं
बंद खिड़की
पैवंद-ज़दा मच्छर-दानी
डोलता पलंग
बैठो तो तहतुस-सुरा हिल जाए
एक औरत
आलम-ए-सुपुर्दगी में
पाँच दस के नोट
खूँटी पे टंगा ओवरकोट
लाम से बे-नैल-ओ-मुराम वापस
पस्पाई
मारका-आराई
जंग से हाता-पाई
सोचो तो सिदरत-उल-मुंतहा हिल जाए