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हर रौशनी की बूँद पे लब रख चुकी है रात - वहाब दानिश कविता - Darsaal

हर रौशनी की बूँद पे लब रख चुकी है रात

हर रौशनी की बूँद पे लब रख चुकी है रात

बढ़ने लगे ज़मीं की तरफ़ तीरगी के हात

जंगल खड़े हैं भेद के और अजनबी शजर

शाख़ें नहीं सलीब कि दुश्वार है नजात

हो के कभी उदास यहाँ बैठता तो था

चल के किसी दरख़्त से पूछें तो उस की बात

हाथों में गर नहीं तो निगाहों को दीजिए

उस साहिब-ए-निसाब-ए-बदन से कोई ज़कात

इन पर्बतों के बीच थी मस्तूर इक गुफा

पत्थर की नरमियों में थी महफ़ूज़ काएनात

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In Hindi By Famous Poet Wahab Danish. is written by Wahab Danish. Complete Poem in Hindi by Wahab Danish. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.