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ये कश्मकश-ए-मुनइ'म-ओ-नादार कहाँ तक - वफ़ा सिद्दीक़ी कविता - Darsaal

ये कश्मकश-ए-मुनइ'म-ओ-नादार कहाँ तक

ये कश्मकश-ए-मुनइ'म-ओ-नादार कहाँ तक

सरमाया-ओ-मेहनत की ये तकरार कहाँ तक

टूटेगी न ज़ुल्मात की दीवार कहाँ तक

उट्ठेगी न वो चश्म-ए-सहर-बार कहाँ तक

इस शहर-ए-दिल-आज़ार में अब देखना ये है

रहती है यूँही यूरिश-ए-आज़ार कहाँ तक

ख़ुशनूदी-ए-सय्याद की ख़ातिर यूँही यारो

ज़िंदानों को कहते रहें गुलज़ार कहाँ तक

इक रोज़ बिल-आख़िर मुझे तस्लीम करेंगे

झुटलाएँगे मुझ को मिरे अग़्यार कहाँ तक

इस तरह तो सर मा'रका-ए-दार न होगा

छानोगे 'वफ़ा' कूचा-ए-दिलदार कहाँ तक

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In Hindi By Famous Poet Wafa Siddiqui. is written by Wafa Siddiqui. Complete Poem in Hindi by Wafa Siddiqui. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.