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मौजों की साज़िशों ने किनारा नहीं दिया - वफ़ा नक़वी कविता - Darsaal

मौजों की साज़िशों ने किनारा नहीं दिया

मौजों की साज़िशों ने किनारा नहीं दिया

तिनके ने डूबते को सहारा नहीं दिया

उस ने भी मेरा हाल न पूछा किसी भी वक़्त

मैं ने भी उस को कोई इशारा नहीं दिया

उस रात को सियाह बताने में क्या गुरेज़

पलकों पे जिस ने कोई सितारा नहीं दिया

तारीख़ लिख रही थी नए सर की दास्तान

लेकिन सिनाँ ने नाम हमारा नहीं दिया

मुद्दत से ऐसे ख़्वाब में उलझे हुए हैं लोग

जिस ने हक़ीक़तों में नज़ारा नहीं दिया

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