हम ने अपने आप से जब बात की
आ गई रस्ते में इक दीवार सी
अपने दरवाज़े पे दस्तक दे कोई
एक सन्नाटे पे दुनिया खो गई
कौन से नुक़्ते पे ला कर तोड़ते
उम्र-ए-रफ़्ता तेरी यादों की कड़ी
'दर्द' अपना हम तआरुफ़ दें तो क्या
हम तो अपने आप से हैं अजनबी
Wasi Shah
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Gulzar
Habib Jalib
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(702) Peoples Rate This
जिस जगह भी मिला घना साया
जाने कितना जीवन पीछे छूट गया अनजाने में
हैं किस लिए उदास कोई पूछता नहीं
तुम ने हमारा साथ दिया तो ख़ुद को हम पा जाएँगे
तन्हाई में दिखते लम्हे जब कुछ याद दिलाते हैं
अगर कुछ मोड़ रस्ते में न आते
बहुत उकता गया हूँ अपने जी से
अब हम चराग़ बन के सर-ए-राह जल उठे
अब तो सोच लिया है यारो दिल का ख़ूँ हो जाने दूँ
हम ने घटता-बढ़ता साया पग-पग चल कर देखा है