करना है कार-ए-ख़ैर तो फिर सर न देखना

करना है कार-ए-ख़ैर तो फिर सर न देखना

बरसें जो तेरी ज़ात पे पत्थर न देखना

लगने लगेंगे दोस्त भी दुश्मन सभी तुम्हें

यानी है किस के हाथ में ख़ंजर न देखना

रखना हक़ीक़तें भी निगाहों के सामने

दिन रात सिर्फ़ ख़्वाब का मंज़र न देखना

रह जाए रंग-ओ-बू से तअल्लुक़ तिरा अगर

फूलों को अपने हाथ से छू कर न देखना

जाना अगर है पार तो हो कर सवार तुम

कश्ती के साथ साथ समुंदर न देखना

ख़ुद करना ज़िंदगी से वफ़ाओं का फ़ैसला

क्या कह रहा है तुम से मुक़द्दर न देखना

मसरूफ़ अपनी जंग में रहना सदा मगर

नज़रें उठा के तुम कभी ऊपर न देखना

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In Hindi By Famous Poet Vishma Khan Vishma. is written by Vishma Khan Vishma. Complete Poem in Hindi by Vishma Khan Vishma. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.