उस हिज्र पे तोहमत कि जिसे वस्ल की ज़िद हो
उस दर्द पे ला'नत की जो अशआ'र में आ जाए
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Parveen Shakir
Wasi Shah
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Rahat Indori
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1969) Peoples Rate This
मुझ से कब उस को मोहब्बत थी मगर मेरे बा'द
मैं तो शब-ए-फ़िराक़ था तुम एक उम्र थी
इक रोज़ खेल खेल में हम उस के हो गए
दिलों पे दर्द का इम्कान भी ज़ियादा नहीं
इतना हैरान न हो मेरी अना पर प्यारे
हर मुलाक़ात पे सीने से लगाने वाले
बदन में आग है रोग़न मिरे ख़याल में है
इस ख़राबी की कोई हद है कि मेरे घर से
जुनूँ के बाब में अब के ये राएगानी हो
हमीं ने हश्र उठा रक्खा है बिछड़ने पर