कुछ इस लिए भी तिरी आरज़ू नहीं है मुझे
मैं चाहता हूँ मिरा इश्क़ जावेदानी हो
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बदन में आग है रोग़न मिरे ख़याल में है
मुझ से कब उस को मोहब्बत थी मगर मेरे बा'द
उस हिज्र पे तोहमत कि जिसे वस्ल की ज़िद हो
दिलों पे दर्द का इम्कान भी ज़ियादा नहीं
हर मुलाक़ात पे सीने से लगाने वाले
जल्द आएँ जिन्हें सीने से लगाना है मुझे
इतना हैरान न हो मेरी अना पर प्यारे
सफीर-ए-इश्क़ हमें अब तो हम सफ़र कर लो
इक लम्हा-ए-फ़िराक़ पे वारा गया मुझे
इस से पहले कि ये आज़ार गवारा कर लें
इस ख़राबी की कोई हद है कि मेरे घर से