बदन में आग है रोग़न मिरे ख़याल में है
जुदा ही रह अभी ख़तरा बहुत विसाल में है
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हमीं ने हश्र उठा रक्खा है बिछड़ने पर
इक लम्हा-ए-फ़िराक़ पे वारा गया मुझे
जल्द आएँ जिन्हें सीने से लगाना है मुझे
इक रोज़ खेल खेल में हम उस के हो गए
इतना हैरान न हो मेरी अना पर प्यारे
तमाम इश्क़ की मोहलत है इस आँखों में
मैं तो शब-ए-फ़िराक़ था तुम एक उम्र थी
इक दिन तिरी गली में मुझे ले गई हवा
हर मुलाक़ात पे सीने से लगाने वाले
इस से पहले कि ये आज़ार गवारा कर लें
दिलों पे दर्द का इम्कान भी ज़ियादा नहीं