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वक़्त की ताक़ पे दोनों की सजाई हुई रात - विपुल कुमार कविता - Darsaal

वक़्त की ताक़ पे दोनों की सजाई हुई रात

वक़्त की ताक़ पे दोनों की सजाई हुई रात

किस पे ख़र्ची है बता मेरी कमाई हुई रात

और फिर यूँ हुआ आँखों ने लहु बरसाया

याद आई कोई बारिश में बिताई हुई रात

हिज्र के बन में हिरन अपना भी मेरा ही गया

उसरत-ए-रम से बहर-हाल रिहाई हुई रात

तू तो इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत को लिए बैठा है

तो कहाँ जाती मिरे जिस्म पे आई हुई रात

दिल को चैन आया तो उठने लगा तारों का ग़ुबार

सुब्ह ले निकली मिरे हाथ में आई हुई रात

और फिर नींद ही आई न कोई ख़्वाब आया

मैं ने चाही थी मिरे ख़्वाब में आई हुई रात

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In Hindi By Famous Poet Vipul Kumar. is written by Vipul Kumar. Complete Poem in Hindi by Vipul Kumar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.