रोज़ ही पीना रोज़ पिलाना रोज़ ग़मों से टकराना
इक दिन मय को भूल के आओ गंगा-जल की बात करें
Allama Iqbal
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
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Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
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अपनी तो गुज़री है अक्सर अपनी ही मन-मानी में
मेहनत कर के हम तो आख़िर भूके भी सो जाएँगे
जीवन है पल पल की उलझन किस किस पल की बात करें
लेने वाले तो सभी कुछ ले गए
इक समुंदर के हवाले सारे ख़त करता रहा
एक भी क़तरा न छोड़ा कीजिए