मेहनत कर के हम तो आख़िर भूके भी सो जाएँगे
या मौला तू बरकत रखना बच्चों की गुड़-धानी में
Mir Taqi Mir
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रोज़ ही पीना रोज़ पिलाना रोज़ ग़मों से टकराना
जीवन है पल पल की उलझन किस किस पल की बात करें
इक समुंदर के हवाले सारे ख़त करता रहा
अपनी तो गुज़री है अक्सर अपनी ही मन-मानी में
लेने वाले तो सभी कुछ ले गए
एक भी क़तरा न छोड़ा कीजिए