इक समुंदर के हवाले सारे ख़त करता रहा
वो हमारे साथ अपने ग़म ग़लत करता रहा
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एक भी क़तरा न छोड़ा कीजिए
लेने वाले तो सभी कुछ ले गए
जीवन है पल पल की उलझन किस किस पल की बात करें
मेहनत कर के हम तो आख़िर भूके भी सो जाएँगे
रोज़ ही पीना रोज़ पिलाना रोज़ ग़मों से टकराना
अपनी तो गुज़री है अक्सर अपनी ही मन-मानी में