इक समुंदर के हवाले सारे ख़त करता रहा

इक समुंदर के हवाले सारे ख़त करता रहा

वो हमारे साथ अपने ग़म ग़लत करता रहा

क्या किसी बदलाव से ये ज़िंदगी बदली कभी

क्यूँ नई वो रोज़ अपनी शख़्सिय्यत करता रहा

उस की तन्हाई का आलम दोस्तो मत पूछिए

घर की हर दीवार से वो मस्लहत करता रहा

थी ख़बर अब अपने हक़ में कुछ नहीं बाक़ी रहा

जान कर मैं काग़ज़ों पर दस्तख़त करता रहा

हाँ उसे शाएर ज़माना कह रहा है इन दिनों

जो दिवाना अपने ग़म की तर्बियत करता रहा

आज समझा ठोकरों के ब'अद भी है ज़िंदगी

क्यूँ अता मुझ को 'मुसाफ़िर' ये सिफ़त करता रहा

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In Hindi By Famous Poet Vilas Pandit Musafir. is written by Vilas Pandit Musafir. Complete Poem in Hindi by Vilas Pandit Musafir. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.