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ज़रा लौ चराग़ की कम करो मिरा दुख है फिर से उतार पर - विकास शर्मा राज़ कविता - Darsaal

ज़रा लौ चराग़ की कम करो मिरा दुख है फिर से उतार पर

ज़रा लौ चराग़ की कम करो मिरा दुख है फिर से उतार पर

जिसे सुन के अश्क छलक पड़ें वही धुन बजाओ सितार पर

ज़रा हैरतों से निकल तो लूँ ज़रा होश आए तो कुछ कहूँ

अभी कुछ न पूछ कि क्या हुआ मिरा ध्यान अभी है ग़ुबार पर

कहीं हर्फ़ हर्फ़ गुलाब है कहीं ख़ुशबुओं से ख़िताब है

मैं ख़िज़ाँ-नसीब सही मगर मिरा तब्सिरा है बहार पर

मिरे दोस्त तुझ को है क्या पता तुझे दे रहे हैं जो मशवरा

यही लोग जश्न मनाएँगे मिरी जीत पर तिरी हार पर

जहाँ हर सिंगार फ़ुज़ूल हों जहाँ उगते सिर्फ़ बबूल हों

जहाँ ज़र्द रंग हो घास का वहाँ क्यूँ न शक हो बहार पर

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In Hindi By Famous Poet Vikas Sharma Raaz. is written by Vikas Sharma Raaz. Complete Poem in Hindi by Vikas Sharma Raaz. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.