सब के आगे नहीं बिखरना है
अब जुनूँ और तरह करना है
क्या ज़रूरत है इतने ख़्वाबों की
दश्त-ए-शब पार ही तो करना है
आ गए ज़िंदगी के झाँसे में
ठान रक्खा था आज मरना है
पूछना चाहिए था दरिया को
डूबना है कि पार उतरना है
बैंड-बाजा है थोड़ी देर का बस
रात भर किस ने रक़्स करना है