न हम-सफ़र है न हम-नवा है
न हम-सफ़र है न हम-नवा है
सफ़र भी इस बार दूर का है
मैं देख कर जिस को डर रहा था
वो साया मुझ से लिपट गया है
तमाम रंगों से भर के मुझ को
वो शख़्स तस्वीर हो गया है
नदी भी रस्ता बदल रही है
पहाड़ का क़द भी घट रहा है
तुम्हीं ने तारीकियाँ बुनी थीं
तुम्हीं को ये जाल काटना है
चलो कि दरिया निकालते हैं
उठो कि सहरा पुकारता है
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