मुसाफ़िरों के लिए साज़गार थोड़ी है
मुसाफ़िरों के लिए साज़गार थोड़ी है
शजर बबूल का है साया-दार थोड़ी है
ये खींच-तान तो हिस्सा है दोस्ती का मियाँ
तअ'ल्लुक़ात में लेकिन दरार थोड़ी है
उसे भी ज़िद है कि शादी करेगी तो मुझ से
जुनून मेरे ही सर पे सवार थोड़ी है
कभी-कभार सही मिलने आ तो सकते हो
मिरा मकान समुंदर के पार थोड़ी है
मिरे ख़याल मिरी ज़िंदगी का हिस्सा हैं
मिरी ग़ज़ल पे किसी का उधार थोड़ी है
मुशाएरे में ग़ज़ल भी न पढ़ सकूँ जा कर
बुख़ार है मुझे इतना बुख़ार थोड़ी है
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