जुनूँ की पैरवी से ख़ुश नहीं हूँ
जुनूँ की पैरवी से ख़ुश नहीं हूँ
तिरी दीवानगी से ख़ुश नहीं हूँ
इरादा तो नहीं है ख़ुद-कुशी का
मगर मैं ज़िंदगी से ख़ुश नहीं हूँ
मुझे सूरज से कुछ शिकवा नहीं है
मैं अपनी रौशनी से ख़ुश नहीं हूँ
मैं क़तरा हूँ मुझे इस की ख़ुशी है
पर इस उथली नदी से ख़ुश नहीं हूँ
वो मेरी लब-कुशाई से ख़फ़ा है
मैं उस की ख़ामुशी से ख़ुश नहीं हूँ
ये चितकबरी सहर हासिल नहीं है
मैं इस झूटी ख़ुशी से ख़ुश नहीं हूँ
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