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अब कहाँ दर्द जिस्म-ओ-जान में है - विजय शर्मा अर्श कविता - Darsaal

अब कहाँ दर्द जिस्म-ओ-जान में है

अब कहाँ दर्द जिस्म-ओ-जान में है

दफ़्न है दिल बदन दुकान में है

दिन ढले रोज़ यूँ लगे जैसे

कोई मुझसा मिरे मकान में है

दिल का कुछ भी पता नहीं चलता

हाथ में है कि आसमान में है

छाँव के पल जला दिए सारे

उफ़ वो सूरज जो साएबान में है

क्यूँ न तश्बीह फूल हो उस की

वो जो ख़ुशबू सा दास्तान में है

इक सवाल और 'अर्श' बाक़ी है

आख़िरी तीर भी कमान में है

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In Hindi By Famous Poet Vijay Sharma Arsh. is written by Vijay Sharma Arsh. Complete Poem in Hindi by Vijay Sharma Arsh. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.